वो अपना प्यारा घर...


जाने अनजाने पीछे मुड़के देखता हूँ
बैठे बैठे कुछ सोचने लग जाता हूँ
प्यार बेइंतहां करता हूँ तुमसे फिर भी हूँ रूठा
सच मालूम है मुझे फिर भी बन बैठा हूँ झूठा
डरता हूँ जाने से घर, हमारा वो प्यारा घर
टूट जाऊँगा मैं अगर तुम ना हुई वहां अगर

धडकनें तेज हो जाती हैं, साँसे फूल जाती हैं
तुम न होगी सोचके ही मेरी आँहें निकल जाती हैं
कदम लड़खड़ाती हैं, हाथ कंप जाती हैं
तुम ना होगी सोचके ही पाँव थम जाती हैं


सच मालूम है मुझे फिर भी बन हूँ अनजाना
मेरी हालत देख अब पापा भी कहते हैं मुझे दीवाना
कहने दो जो वो कहना चाहें, मुझे अब नहीं कोई परवाह
तुम वापस आ जाओ जानु, मेरी है ये आखिरी चाह

माँ, भाई, भाभी सब समझाना चाहते हैं
कि जिनको जाना है, वो तो चले ही जाते हैं
जग कहता है कि तुम बन चुकी हो जन्नत की परी
मेरा दिल कहता हैं तुम अभी भी घर में हो दरवाजे पर खड़ी
वहम की इस दुनिया को बन लिया अब अपना संसार
तभी तो साल से नहीं गया हूँ घर, वो अपना प्यारा घर

चौथी मंज़िल पर दायें मुड़ते ही वो लाल दरवाज़ा
जिसके पीछे दो कमरों का महल था हमने सजाया
सामान की कमी हमने प्यार से की थी पूरी
याद आती है मुझे तुम्हारे हाथ की हलवा-कचौड़ी


घर आऊंगा तो अबकी रसमलाई बनाना
पर सबसे पहले मुझसे लिपट जाना
डांटना, रूठ जाना कि क्यों देर लगाई घर आने में
क्या सोच साल लगा दिया मैं लौट आने में

सच मानो, मैं कुछ भी कर तुमको मनाऊँगा जी
बस तुम होना वहाँ घर जब मैं जाऊँ जी
आँखें बिछाये, मेरी राह रक्ते दरवाज़े पे खड़ी
डरता हूँ मैं जाने से घर, वो अपना घर
दुनिया लूट जायेगी मेरी तुम ना होगी उधर


This poem could be thoughts of a person who has lost someone very dear forever. Some times we are unable to cope up with reality and build up walls of hope. These walls of hope support our imaginary world which hides the harsh reality from us. Even when we are aware of truth, we choose to not believe in it.


-6/5/2016 (June 5, 2016) 3:12 pm
Sitting idle doing nothing at home. Somehow I have been sad for last many days. Needed a release.

Comments

Popular posts from this blog

बिल्लो अलविदा (Bella Ciao in Hindi)

IDENTITY ... A fight between me and my thoughts.

Normal I am going to be