रहूँ मैं कहीं भी ...
रहूँ मैं कहीं भी घर तो मेरा गाँव में ही है AC में वो नींद कहाँ पेड़ों के छाँव में जो है बड़ा में कितना भी हो जाऊँ स्थान तो मेरा मम्मी-पापा के पाँव में ही है रहूँ मैं कहीं भी घर तो मेरा गाँव में ही है बाहर निकला दुनिया घूमा पूरे किए बहुतेरे सपने उमर बीत गयी तब एहसास हुआ घर छूटा गाँव छूटा छूट गए सब अपने आज अकेला हूँ तो पता चला असली कमाई तो प्रेम में ही है रहूँ मैं कहीं भी घर तो मेरा गाँव में ही है