Hote pankh mere to...
होते पंख मेरे तो मैं उड़ जाती उड़ उड़ के दूर डाल पे बैठ जाती तेरे खुनी पंजों से बच जाती होते पंख मेरे तो मैं उड़ जाती हवस की आग जो बुझाय है तूने एक मासूम की इज़्ज़त लूटा है तूने बेटी मैं किसी की, बहन किसी की मुझे दामिनी बनाया है तूने तेरे पकड़ मैं कभी न आती होते पंख मेरे तो मैं उड़ जाती सुनसान राह देख मुझे छेड़ दिया अकेली, अबला जान मुझे हर लिया कोई जटायु ना मुझे बचाया राहगीरों ने मुँह फेर लिया भागती, किसी डाली में छिप जाती होते पंख मेरे तो मैं उड़ जाती शायद तब भी मैं न बच पाती शायद तब पर कुतरे जाते मैं तड़पती, खूब छटपटाती लेकिन एक आखिरी उड़ान तो भरती भंवरी, इमराना, सौम्य या अनजाना शायद तब भी बनती लेकिन एक आखिरी उड़ान तो भरती पंख होते तो शायद बच जाती किसी की बेटी, किसी की बहन आज भी कहलाती सुनसान अंधेरी कोठरी में अकेले न रोती चुप चाप अंदर ही अंदर न घुटती सुबकियों में रातें न बैठती होते पंख अगर तो शायद बच जाती दूर कहीं किसी डाल पे बैठ जाती Hote pankh mere to main ud jaati Ud ud ke door daal pe baith jaati Tere khooni panjon se bach jaati Hote pankh mere to main ud jaati ...